रविवार, 7 मार्च 2021

कब तक आशा –दीप जलाऊँ ,

 

                             गीत

                  कब तक आशा दीप जलाऊँ ,                                 

                  इस अल्लढ़ मन को समझाऊँ |

             जनम जनम से मन की राधा ,

             खोज रही अपना मन भावन |

             तृष्णा नहीं मिटी दर्शन की ,

             रीत गया यह सारा जीवन |

                 अब कब तक उस श्याम बरन को ,

                 नित श्वासों का अर्घ्य चढाऊं |

             सोचा था मन के उपवन में ,

             रंग बिरंगे फूल खिलेंगे |

             जब जब चाँद हंसेगा नभ में ,

             सारे सुख भू पर उतरेंगे | 

                 अब कब तक कल्पना कुन्ज में ,

                 गाऊँ , चातक सा अकुलाऊँ |

             जाने कब से पागल सुधियाँ ,

             बैठीं पथ में पलक बिछाये  |

             कुछ अतृप्ति , कुछ पीर संजोकर ,

             स्वागत में दृग दीप जलाये |

             अब कब तक उस भोर किरन की ,

                 सतत प्रतीक्षा करता जाऊं |

   

        स्वरचित – आलोक सिन्हा           

 

 

 

 

 

 

 

 

21 टिप्‍पणियां:

  1. जनम जनम से मन की राधा ,

    खोज रही अपना मन भावन |

    तृष्णा नहीं मिटी दर्शन की ,

    रीत गया यह सारा जीवन |

    अब कब तक उस श्याम बरन को ,

    नित श्वासों का अर्घ्य चढाऊं |..आध्यात्मिक भाव से ओतप्रोत सुंदर कविता..

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    1. जिज्ञासा जी बहुत बहुत आभार धन्यवाद अच्छी टिप्पणी के लिए।

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  2. जाने कब से पागल सुधियाँ ,
    बैठीं पथ में पलक बिछाये |
    कुछ अतृप्ति , कुछ पीर संजोकर ,
    स्वागत में दृग दीप जलाये |
    अब कब तक उस भोर किरन की ,
    सतत प्रतीक्षा करता जाऊं |
    बहुत ही मार्मिकता से प्रतीक्षारत मन की व्यथा बयाँ करती भावपूर्ण रचना आदरणीय आलोक जी | भावों की समृद्धता में आपका कोई सानी नहीं | हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई | सादर

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  3. रेणु की बहुत बहुत आभार धन्यवाद इस सुन्दर टिप्पणी के लिए ।

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  4. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 10 मार्च 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत बहुत आभार धन्यवाद , इस विशेष सम्मान के लिए |

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  5. प्रतीक्षा एक न एक दिन जरूर ख़त्म होती है, बस निरंतर आस बनी रहनी चाहिए दिल में और निराशा हावी नहीं हो मन में

    बहुत सुन्दर आध्यात्म भरी प्रस्तुति

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  6. मेरे लिए ऐसी काव्य-रचनाएं टिप्पणी करने के लिए नहीं, चुपचाप रहकर अंदर-ही-अंदर महसूस करने के लिए होती हैं आलोक जी ।

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  7. बहुत बहुत धन्यवाद आभार ज्योति जी

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  8. प्रतिक्षारत मन की पीड़ा को बहुत ही सुंदरता से व्यक्त किया है आपने।

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  9. बहुत बहुत धन्यवाद आभार ज्योति जी

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  10. संजय जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार

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