सरस्वती वन्दना
मात तू शारदे ,
विघ्न सब टार दे ,
अश्रु अंजुरी भरे , कर रहा वन्दना |
जीवन संघर्ष का इक पर्याय है ,
आंसुओं , हर्ष का एक अध्याय है |
हर नयन में हैं सौ सौ सपने मधुर ,
नियति के सामने किन्तु असहाय है |
तू मुझे ज्ञान दे ,
एक वरदान दे ,
हर सुख दुःख में समरस रहे भावना |
पात्र भरता रहे , मैं लुटाता चलूँ ,
दुःख सभी के ह्रदय से लगाता चलूँ |
पग कोई न मंजिल से पहले रुके ,
शूल हर राह के मैं हटाता चलूँ |
तू प्रणय भाव दे ,
नित नया चाव दे ,
हर सिक्त पलक मेरी बने प्रेरणा |
तन दस द्वार वाला माटी का सदन
पंचशर कर रहे हर घड़ी आक्रमण |
समर्पण को नित नये प्रस्ताव हैं ,
मृग मरीचिका में भटक जाये न मन |
तू मुझे शक्ति दे ,
भव-निरासक्ति दे ,
अविचल बस तेरी मैं करूं साधना |
स्व रचित मौलिक – आलोक सिन्हा शब्दार्थ :- १ दस द्वार - दस इन्द्रियां
२ पंचशर – कामदेव के पांच बाण – काम क्रोध लोभ मोह
तृष्णा
३ प्रस्ताव – प्रलोभन
४ मृग मरीचिका – सांसारिक आकर्षण