४ गीत
सखि
! उनको पाषाण न कहना |
इन चंचल नयनों से छिप कर ,
वह मेरे मन में रहते हैं |
मेरी सिसकी , मेरी आहें ,
सब चुपके चुपके सहते हैं |
तुम
मेरे नयनों से छिपने को उनका अभिमान न कहना |
वह मेरे नयनों की उज्ज्वल ,
एक बूँद से करुण
सजल हैं |
वह मेरे प्राणों के झिलमिल --
दीपक से सस्नेह विकल हैं |
तुम मेरे प्राणों
में रहने वाले को निष्प्राण न कहना |
वह मेरी आशा से भोले ,
वह अभिलाषा से अल्हड़ हैं |
वह मेरी चाहों से चंचल ,
वह मेरी साधों से दृढ हैं |
तुम मेरे प्रति नीरवता को उनका निष्ठुर मान न
कहना |
वह मेरी पीड़ा से मादक ,
वह मेरी सुधि से कोमल हैं |
वह मेरे सपनों से सुन्दर ,
वह मेरे मन से निश्छल हैं |
तुम
मेरे संसृति के चिर पहचाने को अनजान न कहना |
रचयिता – कुसुम सिन्हा