गीत
जब से भाभी मिलीं दिन सुघर हो गये ,
सूने सूने सभी पल मधुर हो गये |
पायलें फागुनी गीत गानें लगीं ,
चूड़ियाँ हर घड़ी गुनगुनानें लगीं |
जब से पावन मृदुल पाँव उनके पड़े ,
सब घर देहरी आंगन मुखर हो गये |
कब सवेरा हुआ , कब दुपहरी ढली ,
कुछ नहीं ज्ञात कब दीप-बाती जली |
जब से बातें शुरू मन की उनसे हुईं ,
सब दिवस जैसे छोटे पहर हो गये |
चाँदनी से अधिक गात कोमल , विमल ,
नयन जैसे नेह के खिले हों कमल |
नख - शिख रूप कैसे व्यक्त उनका करूं ,
शब्द बौने औ’ अक्षम अधर हो गये |
स्वरचित मौलिक - आलोक सिन्हा