गुरुवार, 29 अक्टूबर 2020

सखि ! उनको पाषण न कहना |

  ४           गीत

               सखि ! उनको पाषाण न कहना |

                        इन चंचल नयनों से छिप कर ,

           वह मेरे मन में रहते हैं |

           मेरी सिसकी , मेरी आहें ,

           सब चुपके चुपके सहते हैं |

             तुम मेरे नयनों से छिपने को उनका अभिमान न कहना |

          वह मेरे नयनों की उज्ज्वल ,

          एक बूँद से करुण सजल हैं |

          वह मेरे प्राणों के झिलमिल --

          दीपक से सस्नेह विकल हैं |

  तुम मेरे प्राणों में रहने वाले को निष्प्राण न कहना |

                       वह मेरी आशा से भोले ,

                       वह अभिलाषा से अल्हड़ हैं |

                       वह मेरी चाहों से चंचल ,

                       वह मेरी साधों से दृढ हैं |

             तुम मेरे प्रति नीरवता को उनका निष्ठुर मान न कहना |

                       वह मेरी पीड़ा से मादक ,

                       वह मेरी सुधि से कोमल हैं |

                       वह मेरे सपनों से सुन्दर ,

                       वह मेरे मन से निश्छल हैं |

             तुम मेरे संसृति के चिर पहचाने को अनजान न कहना |

               रचयिता   कुसुम सिन्हा

 

 






 

 

 

22 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी रचना को विशेष सम्मान देने के लिए |

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  2. वाह बहुत सुंदर।
    मनके सुंदर एहसास।

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  3. वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर लाजवाब सृजन।

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  4. तुम मेरे प्रति नीरवता को उनका निष्ठुर मान न कहना |

    वह मेरी पीड़ा से मादक ,

    वह मेरी सुधि से कोमल हैं |

    वह मेरे सपनों से सुन्दर ,

    वह मेरे मन से निश्छल हैं |

    तुम मेरे संसृति के चिर पहचाने को अनजान न कहना |
    कुसुम जी आप एक उच्च स्तरीय रचनाकार है आपकी रचना विश्लेषण से विरत संश्लेषण को विवश करती है आपकी अगली रचना के इंतजार में।
    धन्यवाद आलोक जी एक सुंदर प्रस्तुति को भेंट करने के लिए।
    सादर।

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  5. सुंदर टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार धन्यवाद

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  6. कोमल प्रेम भाव का सुन्दर चित्रण ...
    अच्छी रचना ...

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  7. नाशवा जी बहुत बहुत आभार धन्यवाद |

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  8. सखि ! उनको पाषाण न कहना |

    इन चंचल नयनों से छिप कर ,

    वह मेरे मन में रहते हैं |

    मेरी सिसकी , मेरी आहें ,

    सब चुपके चुपके सहते हैं |

    तुम मेरे नयनों से छिपने को उनका अभिमान न कहना |
    आदरणीय आलोक जी, कुसुम दीदी की इस रचना में अनुराग के अटूट बंध है। हर शब्द प्रेम से भरी नायिका के सर्वस्व समर्पण का परिचय देता है। इतनी सुंदर रचना साहित्य की अनमोल थाती है। कोटि आभार इस सुंदर रचना को साझा करने के लिए 🙏🙏

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  9. अलौकिक प्रेम से सजा गीत मन को शांति देता है..
    बहुत सुंदर..

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  10. गिरिजा जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार

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  11. इस गीत को पढ़कर जो सुखद अनुभूति हुई है मुझे, वह अवर्णनीय है ।

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  12. बहुत बहुत धन्यवाद आभार अच्छी रुचिकर टिप्पणी के लिए |

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  13. बहुत बहुत बहुत सुंदर..मन को छूती हुई रचना..

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