सोमवार, 5 अक्तूबर 2020

पाँव कैसे धरूँ

 

                   गीत

 

             चांदनी से किसी ने पखारे चरन |

धूल की राह पर पाँव कैसे धरूँ ?

     बेड़ियों के बिना ही बँधे पाँव हैं |

     स्नेह की बदलियों की सजल छाँव है |

मुक्ति सन्यासिनी बन्धनों की शरण ,

धूल की राह पर पाँव कैसे धरूँ |

      झुक रहा नील अम्बर सितारों जड़ा |

      मुस्कुराता हुआ चाँद चुप चुप खड़ा ||

मैं चलूँ , तो लिपटती हठीली किरन ,

धूल की राह पर पाँव कैसे धरूँ |

      जग रही  रातरानी सुगन्धों भरी |

      है सजल केतकी की मृदुल पांखुरी ||

शूल आँचल गहें , राह रोकें सुमन ,

धूल की राह पर पाँव कैसे धरूँ |

      थरथराते अधर , पुतलियाँ हैं सजल |

      दबाये हुए अंगुलियाँ हैं विकल ||

हैं बरजते खड़े अश्रु भीगे नयन ,

धूल की राह पर पाँव कैसे धरूँ |

 

     रचयिता कुसुम सिन्हा

8 टिप्‍पणियां:

  1. श्वेता जी बहुत बहुत धन्यवाद ह्रदय से आभार ।






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