गीत
चांदनी से किसी ने पखारे चरन |
धूल की राह पर पाँव कैसे धरूँ ?
बेड़ियों
के बिना ही बँधे पाँव हैं |
स्नेह की बदलियों की सजल छाँव है |
मुक्ति – सन्यासिनी बन्धनों की शरण ,
धूल की राह पर पाँव कैसे धरूँ |
झुक रहा नील अम्बर सितारों जड़ा |
मुस्कुराता
हुआ चाँद चुप चुप खड़ा ||
मैं चलूँ , तो लिपटती हठीली किरन ,
धूल की राह पर पाँव कैसे धरूँ |
जग
रही रातरानी सुगन्धों भरी |
है
सजल केतकी की मृदुल पांखुरी ||
शूल आँचल गहें , राह रोकें सुमन ,
धूल की राह पर पाँव कैसे धरूँ |
थरथराते
अधर , पुतलियाँ हैं सजल |
पट दबाये हुए अंगुलियाँ हैं विकल ||
हैं बरजते खड़े अश्रु भीगे नयन ,
धूल की राह पर पाँव कैसे धरूँ |
रचयिता – कुसुम सिन्हा
श्वेता जी बहुत बहुत धन्यवाद ह्रदय से आभार ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंअभिलाषा जी बहुत बहुत आभार |
हटाएंविभारती जी बहुत बहुत आभार |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंमधुलिका जी बहुत बहुत आभार |
जवाब देंहटाएंलाजवाब सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार भाई साहब |
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