२ गीत
कैसे आऊँ पास तुम्हारे मैली हुई चुनरिया |
तन मन
सब डूबे अंसुअन में ,
भीज भीज
कर सब रंग छूटे |
उलझ उलझ
बैरी काँटों में ,
जगमग किरण सितारे टूटे |
कैसे चढूं पहन कर इसको ,
तेरी प्रीत अटरिया |
मैली
हुईं रेशमी चुड़ियां ,
धुंधले
पडी सुहागन बेंदी |
सजल सजल
नयनों का कजरा ,
फीके
पड़े महावर मेंहदी |
इस
सिंगार से कैसे आऊँ , तेरी रूप नगरिया |
सौ सौ जन्म हुए पथ
लखते ,
रो रो कर अँखियाँ
पथराई |
अब न दिखाई देती
मुझको ,
पास खडी अपनी
परछाईं |
कैसे
पहचानूंगी तुमको , बैरिन हुई नजरिया |
दोनों हाथ भरे सुख दुःख से ,
अश्रु हास की गठरी बांधे |
टूटे स्वप्न अभागिन आशा ,
झोली भरी अधूरी साधें |
कैसे
चलूँ इन्हें लेकर मैं , तेरी पुण्य डगरिया |
दोनों हाथ भरे सुख दुःख से , अश्रु हास की गठरी बांधे |
जवाब देंहटाएंटूटे स्वप्न अभागिन आशा ,
झोली भरी अधूरी साधें |
कैसे चलूँ इन्हें लेकर मैं ,
तेरी पुण्य डगरिया |
बहुत ही सुन्दर, भावप्रवण लाजवाब सृजन
वाह!!!
बहुत बहुत धन्यवाद , आभार
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२४-१०-२०२०) को 'स्नेह-रूपी जल' (चर्चा अंक- ३८६४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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अनीता सैनी
बहुत बहुत आभार सम्मान देने के लिए ।
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसतीश जी बहुत बहुत धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुंदर आध्यात्मिक पुट लिए सुंदर हृदय स्पर्शी रचना ।
जवाब देंहटाएंवाह!
बहुत बहुत आभार धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सृजन..भावात्मक..
जवाब देंहटाएंअर्पिता जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार
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