सोमवार, 6 सितंबर 2021

सारे जग की खुशी तुम्हारे

 

यह रचना १९७० के दशक की है | जब सारे देश में परिवार नियोजन की योजना अपने चरम पर थी |

 

                 गीत    

 

सारे जग की खुशी तुम्हारे घर आकर मुस्कायेगी |

जीवन की बगिया के माली ,

एक गुलाब लगाओ |

महके सारी धरती जिससे ,

ऐसा फूल खिलाओ |

सारे जग की गंध तुम्हारी गली गली महकाएगी |

तारों से तो रात अंधेरी ,

एक चन्द्रमा लाओ |

कोना कोना सोना कर दे ,                                                              ऐसा सूर्य उगाओ |

नन्हीं किरन तुम्हारा आंगन रोली से रंग जायेगी |

          अनगिनती ग्रंथों से मत ,

जीवन का बोझ बढाओ |

मानस एक एक गीतांजलि ,

रचो , अमर हो जाओ |

सारे जग की कीर्ति तुम्हारे घर घर गीत सुनाएगी |

 


 

 

36 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार(०६ -०९-२०२१) को
    'गौरय्या का गाँव'(चर्चा अंक- ४१८०)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना, जो आज भी प्रासंगिक है ।

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  3. बहुत बहुत धन्यवाद आभार सुन्दर टिप्पणी के लिए

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  4. बहुत बहुत धन्यवाद आभार गगन जी सार्थक टिप्पणी के लिए ।

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  5. वाह ! सुंदर नीति सा मोहक शाश्वत सा सृजन।
    बहुत बहुत बधाई आलोक जी।
    जीवन पथ पर इतना सरल सहज हो जाएं तो
    जीवन धन्य हो जाए।
    बहुत सुंदर ‌

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आभार कुसुम जी सुन्दर टिप्पणी के लिए |

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  6. बहुत बढ़िया रचना है सर। आपको बहुत-बहुत शुभकामनायें।

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  7. बहुत बहुत धन्यवाद आभार वीरेन्द्र जी सुन्दर टिप्पणी के लिए

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  8. बहुत बहुत धन्यवाद आभार मनोज जी |

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  9. यह रचना तो कालजयी है आलोक जी। इसकी सार्थकता तो सदा रहेगी।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आभार जितेन्द्र जी सुन्दर टिप्पणी के लिए |

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  10. उत्तर
    1. बहुत बहुत धन्यवाद आभार ज्योति जी सुन्दर टिप्पणी के लिए |

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  11. बहुत बहुत धन्यवाद आभार हरीश जी

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  12. अनघ जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार

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  13. मधुलिका जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार

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  14. भावपूर्ण बहुत प्ररक रचना है ...
    आशा का संचार करते फूल, कलि, जीवन में भी आनंदित कर देते हैं ...

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  15. नासवां जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार सुन्दर टिप्पणी के लिए

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  16. शशि जी , बहुत बहुत धन्यवाद आभार

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  17. अनगिनती ग्रंथों से मत ,

    जीवन का बोझ बढाओ |

    मानस एक एक गीतांजलि ,

    रचो , अमर हो जाओ |

    सारे जग की कीर्ति तुम्हारे घर घर गीत सुनाएगी
    वाह!!!!
    बहुत ही सारगर्भित...
    उत्कृष्ट सृजन।

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  18. बहुत बहुत धन्यवाद आभार सुधा जी

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  19. शारदा जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार

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