गीत
पल गिन गिन पन्थ निहारा
,
नयनों के दीप जला कर |
मन की खिलती आशा से
,
नव वन्दनवार सजाकर |
मैंने जग जगकर कितने कल्प बिताये ,
तुम की जानो ?
अविरल आँहों की झड़ में ,
प्राणों की व्यथा न जानी |
नयनों से सिसक सिसककर ,
बिखराये गीत कहानी |
गीले पट में कितने इतिहास छिपाए ,
तुम क्या जानो ?
युग युग
की निरत प्रतीक्षा -
में , साधें सिसकी रोई |
दृग
के सपनों की दुनियाँ ,
अपने
आंसू से धोई |
मैंने रच रचकर कितने विश्व मिटाए ,
तुम क्या जानो ?
तुमने समझा भावुक हूँ ,
अल्लड हूँ , मोहमयी भी
|
बिन कारण हँस- रो देती
,
शैशव
की स्वप्नमयी सी |
इन सपनों में कितने अवसाद छिपाए ,
तुम क्या जानो ?
रचना – कुसुम सिन्हा