गीत
तब मैं गीत लिखा करता हूँ |
जब मेरे अन्तर की ज्वाला ,
सीमाओं से बढ़ जाती है |
आंसू की अविरल बरखा भी ,
उसे न जब कम कर पाती है |
तब मैं लेखनी की वंशी पर
मेघ मल्हार छेड़ा करता हूँ |
जब भी कोई फाँस ह्रदय में
गहरी चुभन छोड़ जाती है |
मन के सरल सुकोमल तन से ,
सहन नहीं कुछ हो पाती है |
तब मैं शब्दों के मरहम से ,
मन के घाव भरा करता हूँ |
जब सुधियों की भीड़ द्वार पर ,
पागल हो दस्तक देती है |
कोमल मधुरिम सपनों वाली ,
नींद नयन से हर लेती है |
तब मैं भावुकता के सुरभित -
उपवन में विचरा करता हूँ |
स्वरचित --- आलोक सिन्हा
आदरणीय आलोक जी, बहुत ही सुंदर और अंतर्मन को छूने वाली रचना का सृजन किया है आपने..मैं भी इन भावों से अछूती नहीं है..सादर शुभकामनाएँ..
जवाब देंहटाएंजिज्ञासा जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार १५ जनवरी २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
श्वेता जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार भाई साहब
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंसुन्दर।
सधु जी बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंआलोक जी, बहुत सुंदर रचना! आपने शब्दों की साधना की हैसाधुवाद ! ये पंक्तियाँ:
जवाब देंहटाएंजब सुधियों की भीड़ द्वार पर ,
पागल हो दस्तक देती है।
कोमल मधुरिम सपनों वाली ,
नींद नयन से हर लेती है।
तब मैं भावुकता के सुरभित -
उपवन में विचरा करता हूँ।।
--ब्रजेंद्रनाथ
बहुत बहुत धन्यवाद आभार
हटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर आलोक जी । इस कविता की चाहे जितनी भी प्रशंसा की जाए, कम ही होगी ।
जवाब देंहटाएंजितेन्द्र जी बहुत बहुत आभार अच्छी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंजब भी कोई फाँस ह्रदय में
जवाब देंहटाएंगहरी चुभन छोड़ जाती है |
मन के सरल सुकोमल तन से ,
सहन नहीं कुछ हो पाती है |
तब मैं शब्दों के मरहम से मन के घाव भरा करता हूँ |
आदरणीय आलोक जी, संवेदनाओं की मार्मिकता से भरी अभिव्यक्ति। वेदना मधुर काव्य की जननी है। आपके गीतों में भावनाओं का सरस प्रवाह बहुत भावपूर्ण है। हार्दिक शुभकामनाएं और प्रणाम 🙏🙏
बहुत बहुत आभार धन्यवाद
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