शुक्रवार, 25 सितंबर 2020

कैसे आऊँ पास तुम्हारे

 

                        गीत

 

               कैसे आऊँ पास तुम्हारे मैली हुई चुनरिया |

                     तन मन सब डूबे अंसुअन में ,

                     भीज भीज कर सब रंग छूटे |

                     उलझ उलझ बैरी काँटों में ,

                     जगमग किरण सितारे टूटे |

              कैसे चढूं पहन कर इसको , तेरी प्रीत अटरिया |

                     मैली हुईं रेशमी चुड़ियां ,

                     धुंधले पडी सुहागन बेंदी |

                     सजल सजल नयनों का कजरा ,

                     फीके पड़े महावर मेंहदी |

               इस सिंगार से कैसे आऊँ , तेरी रूप नगरिया |

                     सौ सौ जन्म हुए पथ लखते ,

                     रो रो कर अँखियाँ पथराई |

                     अब न दिखाई देती मुझको ,

                     पास खडी अपनी परछाईं | 

               कैसे पहचानूंगी तुमको , बैरिन हुई नजरिया |

                     दोनों हाथ भरे सुख दुःख से ,

                     अश्रु हास की गठरी बांधे |

                     टूटे स्वप्न अभागिन आशा ,

                     झोली भरी अधूरी साधें |

               कैसे चलूँ इन्हें लेकर मैं , तेरी पुण्य डगरिया |

 

 

 

 

 

 

 

शुक्रवार, 18 सितंबर 2020

कवयित्री कुसुम सिन्हा

 

 कवयित्री सुश्री कुसुम सिन्हा --- व्यक्तित्व एवं कृतित्व

                        ( १४.११.१९२८ २२-११.२००८ ) 

 

  हिन्दी कवयित्रियों में माननीयाँ सुश्री कुसुम सिन्हा का का नाम एक ऐसा नाम है जिसे   १९४८ से १९७५  के मध्य का शायद कोई ऐसा मंचीय कवि होगा  जो उनके नाम से परिचित न हो | वह १९४८ से १९७५ तक काव्य मंच पर पूरी तरह सक्रिय रही | उत्तर प्रदेश , मध्य प्रदेश , पंजाब राजस्थान , बंगाल , दिल्ली , महाराष्ट्र में आयोजित अधिकाँश कवि सम्मेलनों में उन्हें बड़े आदर के साथ काव्य पाठ के लिए आमंत्रित किया जाता था | विभिन्न आकाशवाणी केन्द्रों जैसे दिल्ली , लखनऊ इलाहाबाद जालन्धर कलकत्ता से उन्हें १९७० तक निरंतर काव्य पाठ के लिए बुलाया  जाता रहा | नगर में उनकी लोक प्रियता उनकी मृत्यु तक एक ऐसे चरम बिन्दु पर थी कि यदि कोई प्रशंसक उनका पूरा पता पास न होने के कारण अपने पत्र पर केवल कुसुम सिन्हा बुलन्दशहर लिख देता था  तो तब भी उसका पत्र उनके घर पहुच जाता था | पत्र पर मकान नम्बर , गली मोहल्ला कुछ लिखने की आवश्यकता नहीं थी | १९८० के बाद अस्वस्थ हो जाने के कारण उन्होंने कवि सम्मेलनों में जाना लगभग बन्द सा कर दिया | २२.११.२००८ को ८० वर्ष की अवस्था में ब्रेन हेम्ब्रेज हो जाने से उनका देहावसान हो गया |

 माननीय माखन लाल चतुर्वेदी की दृष्टि में ---

           सन १९५० के दशक में दूरदर्शन न होने के कारण आकाश वाणी का बहुत महत्व था | सब बच्चे वृद्ध उसी पर अपने मन पसंद कार्य क्रम सुनते थे | १९५२ में जब दादा माखनलाल चतुर्वेदी जी ने उनके दो गीत दिल्ली आकाशवाणी पर सुने तो इतने खुश हुए कि उन्हें तुरन्त अगले माह ही इंदौर कवि सम्मेलन में विशेष आग्रह के साथ आमंत्रित किया और फिर भूपाल भी एक कविसम्मेलन में बुलाया | इसके बाद जब १९५४ में स्वयं उनके अपने निवास नगर खंडवा में एक कवि सम्मेलन का आयोजन हुआ तो उन्होंने १४. २. १९५४ को कुसुम जी को उस के लिए  आमंत्रित करते हुए अपने पत्र में लिखा ----

आपके काव्य के चरम माधुरी की मैं दाद देता हूँ और यह प्रतीक्षा कर रहा हूँ कि आपका काव्य और गद्य दोनों साहित्य में सर्वांगीण दिशाएं बदल बदल कर अपने मधुर और सशक्त रूप में , साहित्य में अपने संकल्पों में अपनी स्वर्ण रेखा खीचने में  समर्थ होंगे |’’

माननीय श्री कन्हैयाँ लाल मिश्र `प्रभाकर` -

          जी ने अपनी मासिक पत्रिका , नया जीवन में उनका एक गीत प्रकाशित करते हुए उनके परिचय में लिखा ---  

  बोल कोमल से , शरीर खरगोश का , स्वाभाव गाय का . इरादे कछुए के , सांसारिक जीवन में अकिंचन सी तो विचारों की दुनियां में कंचन मई और अपने

में खुश -- हिदी की राजकुमारी लाडली कुसुम जिसका वर्तमान और भविष्य दोनों उज्ज्वल हैं |

माननीय क्षेम चन्द्र ` सुमन '  द्वारा मूल्यांकन `--- 

    वर्तमान शती के छठे दशक में हिन्दी काव्य क्षेत्र में जिन कवयित्रियों ने अपनी विशिष्ट रचना प्रतिभा का परिचय दिया था उनमें सुश्री कुसुम सिन्हा का नाम अन्यतम है | कल्पना , साधना और अनुभूति से परिपूर्ण उनके गीतों ने जहाँ अपनी विशिष्ट भाव भंगिमा का परिचय दिया था वहां प्रत्येक सह्रदय मानव उनकी उदात्त और अवदात रसानुभूति से आप्लावित आप्यायित सा अनुभव करता था | पूरे एक दशक तक कुसुम की रचनाओं की धूम रही थी |

 कुसुम की जिन रचनाओं ने उन दिनों हिन्दी कवि सम्मेलनों में अत्यंत लोक प्रियता अर्जित की थी और जिन में काव्य प्रेमी प्रबुद्ध श्रोता गण अपनी ही पीड़ा और अनुभूति का चित्रण अनुभव करते थे उनमें सखि उनको पाषण न कहना , सपनों ने सन्यास लिया तो , आज तपस्या मुश्किल कर दी , वीणा में झंकार नहीं तथा दीप के निर्वाण को अब रैन कितनी शेष है जैसे बहुत से गीत उल्लेखनीय हैं | जीवन की करुण वेदना और अनुभूतियों का यथातथ्य चित्रण जिस सादगी तथा निराडम्बर भाव से कुसुम ने इन रचनाओं में किया है कदाचित वैसी ऋजुता और पावनता उनकी समकालीन किसी भी कवयित्री के काव्य में दृष्टिगत नहीं होती |

यह वह समय था जब हिन्दी कवि सम्मेलनों में पठित कुसुम की जन मन आल्हादिनी रचनाएँ जनता में बड़ी आतुरता , तन्मयता और उत्सुकता से सुनी जाती थीं | यह काल हिन्दी कवि - सम्मेलनों का ऐसा स्वर्ण युग था , जब उनमें साहित्यिक वातावरण रहता था और जनता भी अत्यंत आत्मीयता से सराबोर होकर पूर्णत: रस ग्रहण करती थी | तब तक सस्ते हास्य और व्यंग विद्रूप से दूषित रचनाओं का हिन्दी काव्य मंच पर प्रवेश नहीं हुआ था |

 माननीय श्री गोपालप्रसाद व्यास ( दिल्ली )                                 एक समय था जब हिन्दी कवि सम्मेलनों के मंच पर कुसुम सिन्हा के गीत बड़े चाव से सुने जाते थे |उन दिनों हिन्दी की कवयित्रियाँ मंच पर नहीं के बराबर थी | मेरे साथ वह अनेक कवी सम्मेलनों में सम्मिलित हुईं | उनका स्वर ,अभिव्यक्ति और गीतों की गुणवत्ता उस समय श्रोताओं के मन को मोह लेती थी |फिर न जाने वह कहाँ खो गई | में पहले भी उनके उत्कर्ष में सहयोगी था और आज भी उनके प्रति हार्दिक शुभ कामनाएं भेज रहा हूँ |  

माननीय श्री राजपाल ‘ करुण ’( श्री अरविन्द आश्रम चरथावल )

        कुसुम सिन्हा के गीतों की संगीतात्मक तन्मयता तथा उसमें अभिव्यक्त भावों की उद्दात्त मर्म स्पर्शिता उनके काव्य को ऐसी विशेषता करती है जो महादेवी वर्मा के बाद बहुत कम कवियों में पाई जाती है | उनकी अंतरात्मा की ज्योति उनकी कविताओं में निरंतर प्रज्वलित रही है |और उसे सामान्य जीवन के प्राणिक प्रवेश ने कभी डगमगाया नहीं है | जीवन की पीडायें और विषम परिस्थितियाँ भी अंतरात्मा की अभिव्यक्ति को प्रेरणा प्रदान कर सकती हैं –यही उनके गीतों का संदेश है |

माननीय श्री प्रेम मोहन लखोटिया (लेक गार्डन्स कलकत्ता )

त्याग को ध्येय और पीड़ा को पाथेय बनाने वाली , कसक और कडवाहट प्रत्युत्तर में ममता और मृदुता का उपहार लुटाने वाली तथा समय के शिखर पर सहज और टाल पर महज मौन रहने वाली ,शुद्ध छंद में लयात्मक भावनाओं का मधुर गुंजन भरने वाली ,हिन्दी के अनुशासित काव्य लेखन के उत्कर्ष का बोध कराने वाली ,एकांतमयी ,दुनियादारी से बेखबर इस तपस्विनी के गीतों को समाज के चेतन और कृति अनुरागी पाठकों के सामने प्रस्तुतिकरण अपने आप में एक विशुद्ध उपलब्धि है | प्रणेता और पुरोधा दोनों को मेरे आंतरिक प्रणाम , पाठकों को उनके इस दुर्लभ सौभाग्य पर बधाई |                                                      कविवर श्री रमेश प्रसून जी जिहोने काव्य संग्रह का सम्पादन किया ----

  कुसुम सिन्हा बिसराया गया एक ऐसा साहित्यिक व्यक्तित्व है जिसने ममता , करुणा व स्नेह लुटाकर अपनी व्यक्तिगत इच्छाएं आकांक्षाएँ अपने पारिवारिक दायित्वों के निर्वहन में ही  होम कर दी | जिनके सुकोमल भावों ने अभिव्यंजित हो कर हिन्दी साहित्य को मधुरतम गीत  दिये ; किन्तु दुर्भाग्यवश अभी तक उनका कोई मूल्यांकन नहीं हुआ , जिनके कोकिल कंठ की वाणी के स्वर एक लम्बी अवधि तक आकाश वाणी से प्रसारित होकर समस्त देश में गुंजायमान होते रहे | जिन्होंने किसी समय देश के कोने कोने में सम्पन्न हुये अनेक मंचीय कवि सम्मेलनों में धूम मचा दी थी | उनके अनेक गीत अविस्मरणीय गीत यत्र तत्र प्रकाशित तो हुये ; किन्तु कहीं भी एक पूर्ण संकलन के रूप में संकलित नहीं किये गए | हिन्दी साहित्य की सेवा का दम्भ भरने वाली राष्ट्रीय एवम प्रादेशिक संस्थाओं , प्रकाशकों , राजकीय तंत्रों साहित्यिक मनीषियों विद्वानों और शोध कर्ताओं ने जिन्हें भुला ही दिया तथा जिन्हें संकलित करना अपना दायित्व तक नहीं समझा , वे सारे गीत निश्चित रूप से बीते समय की एक ज्वलन्त धरोहर हैं | यदि उन्हें कबीर , मीरा व महादेवी की परम्परा के छायावादी छटा लिए प्रेम मार्गी रहस्यवाद का वाहक कहा जाय तो अति उक्ति न होगी |

  कुसुम सिन्हा का जन्म १४ नवम्बर १९२८ को आगरा में हुआ था | जबकि उनकी कार्य स्थली बुलन्दशहर ही रही | पिताजी ( श्री कृष्ण मुरारी लाल सक्सेना )का सन १९४४ में अकस्मात देहावसान हो गया | परिवार में सबसे बड़ी होने के कारण १५ वर्ष की अल्प आयु में ही सम्पूर्ण परिवार का दायित्व उनके कोमल कंधों पर आ गया | जिससे वह अध्यापन कार्य करते हुए केवल एम.ए. तक ही शिक्षा ग्रहण कर पायीं और पारिवारिक दायित्वों के निर्वहन में जीवन पर्यन्त विवाह नहीं किया |

     उनकी सम्वेदनशीलता काव्य सृजन के रूप में प्रस्फुटित हो उठी | सन १९४८ से कवि - सम्मेलनों में उनका परिचय प्रस्तुत  होने लगा | उनका सुमधुर गीत पाठ मैंने आंसू से कितने दीप जलाये प्रथम बार आकाशवाणी दिल्ली से सन १९५० में हुआ | फिर तो बीस वर्ष १९७० तक आकाशवाणी के दिल्ली , लखनऊ ,इलाहाबाद जालन्धर तथा कलकत्ता आदि केन्द्रों से प्रसारण का एक क्रम बन गया |

सन १९५२ में आकाशवाणी दिल्ली से सखि ! उनको पाषाण न कहना गीत सुन कर उन्हें पूज्य दादा जी श्री माखन लाल चतुर्वेदी ने इंदौर कवि - सम्मेलन में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया और फिर खंडवा बुलाया | इसके बाद तो खंडवा जैसे कुसुम जी के लिए एक तीर्थ स्थल बन गया | वह हर वर्ष ग्रीष्मावकाश में कुछ दिन के लिए वहां जाने लगीं |

                      दिग्गज साहित्यकारों में पूज्य दादा माखन लाल चतुर्वेदी तो उन्हें सदैव ही प्रेरित व प्रोत्साहित करते रहे | इसके स्तिरिक्त श्री मैथिलीशरण गुप्त , रामधारी सिंह दिनकर , सुमित्रानन्दन पन्त , सोहन लाल दिव्वेदी , क्न्हैयांलाल मिश्र प्रभाकर क्षेमचन्द्र सुमन गोपाल प्रसाद व्यास , विद्यावती कोकिल का भी उन्हें पूरा सहयोग व समर्थन मिलता रहा |

               मंचीय विभूतियों में अन्य समकालीनों के साथ साथ प्रमुख रूप से सर्व श्री हँस कुमार तिवारी ,बलवीर सिंह रंग , श्रीराम शर्मा प्रेम डा. शिवमंगल सिंह सुमन शम्भूनाथ सिंह , गोपाल दास नीरज , वीरेन्द्र मिश्र , देवराज दिनेश ,मुकुट बिहारी सरोज रमानाथ अवस्थी , सोम ठाकुर , भारतभूषण ,रामकुमार चतुर्वेदी ,सुमित्रा कुमारी सिन्हा , मधु भारतीय ,स्नेहलता स्नेह , ज्ञानवती सक्सेना ,आदि निकट सहभागी रहे |

         उनकी रचनाएँ यदा कदा साप्ताहिक हिन्दुस्तान , नया जीवन ,सुमित्रा ,आदर्श ,युवक ,लहर ,शाकम्भरी ,राष्ट्र भारती आदि पत्र - पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं | उनके कुछ गीत पद्म श्री क्षेमचन्द्र सुमन द्वारा सम्पादित आधुनिक हिन्दी कवयित्रियों के प्रेम गीत . कविवर नीरज द्वारा संकलित हिन्दी के श्रृगार गीत , स्नेही जी द्वारा संकलित श्रेष्ट कवयित्रियों की प्रतिनिधि रचनाएँ , श्री  रामरूप पटेल द्थावारा सम्पादित ' सुरभित कलियाँ ' , अशोक अब्बर द्वारा सम्पादित दर्पण के गलियारे में काव्य संकलनों  में भी संकलित मिलते हैं |

 अध्यात्म के प्रति उनकी रूचि प्रारम्भ से ही थी | कविसम्मेलनों की व्यस्तता कम हो जाने के बाद उनका अधिकांश समय चिन्तन मनन और अध्धयन में ही व्यतीत होता था वह वस्तुत: पांडिचेरी आश्रम के अध्यात्म से प्रभावित महर्षि अरविन्द और श्री माँ के आदर्शों की भक्ति भाव से पथ गामिनी हो गई थीं | वे अपने गीतों का प्रेरणा - स्रोत मीरा और महादेवी को मानती थी |

            निस्संदेह उनके गीत स्थूलता से परे प्रेम की दिव्यानुभूति के गीति - काव्य की अमूल्य निधि हैं | निजता में समग्रता की वेदना संजोये , प्रेम भक्ति व ज्ञान वैराग्य की मूर्त- अमूर्त स्थितियों से गुजरते हुए , आध्यात्मिक गति में आबद्ध उनके गीतों को सार निस्सार जीवन की सहज अवस्थाओं के सोपानों के अनुरूप क्रम बद्ध करने का प्रयास किया गया है | इसके अतिरिक्त उनके द्वारा रचित कुछ बाल गीत भी संकलन में सम्मिलित किये गए हैं |

 

                      गीत

 

                     एक उजली दृष्टि अन्तर में समाई |

              बिन बुलाये तीर्थ मेरे द्वार आया |

             बिन छुए पावन हुई है मोह माया ||

                     एक भोली भावना गंगा नहाई |

              फूल से वरदान आंचल में पड़े हैं |

              पुण्य के फल सामने आकर खड़े हैं ||

                      एक पल में साधना ने सिद्धि पाई |

              बाँसुरी अनुभूति की बजने लगी है |

              आत्मा की राधिका सजने लगी है ||

                       एक मंगल ज्योति मन में जगमगाई |