गीत
जिस देश में शिक्षक का मन घायल हो ,
उसका तुम भविष्य अँधेरे में समझो |
शिक्षा तो है आधार जिन्दगी का ,
इससे ही हर व्यक्तित्व निखरता है |
गांधी टैगोर विवेकानंद जैसा ,
मन पावन आदर्शों में ढलता है |
जब कौटिल्य की पीर न नन्द सुने , उस वक्त को दुःख के घेरे में समझो |
हर जाति धर्म के मध्य गहन खाई ,
निर्धनता अधिकारों से वंचित हो |
वह देश छुयेगा नील गगन कैसे ,
हर प्रतिभा प्रतिबंधों से बाधित हो |
जो धरा स्वार्थ लिप्सा में सब डूबी ,
उसका प्रभात तुम कोहरे में समझो |
छल को तो सारे दुर्लभ सुख सम्भव ,
पर श्रम पल भर मुस्कानों को तरसे |
चेतना भटकती सूनी सड़कों पर ,
वाचालों के घर मधुवन से हर्षे |
जिस राज में ऐसी विषम नीतियाँ हों ,
उसका सद्चरित्र तुम खतरे में समझो |
आलोक सिन्हा
बात पते की ! याद रखने की !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार नूपुरम जी
जवाब देंहटाएंबड़ी ही उम्दा रचना
जवाब देंहटाएंमनोज जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार
हटाएंशिक्षक दिवस पर सुंदर सराहनीय रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार धन्यवाद जिज्ञासा जी
हटाएंसार्थक सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार अनीता जी
हटाएंबहुत सटीक, सार्थक एवं लाजवाब सृजन
जवाब देंहटाएंवाह!!!
बहुत बहुत धन्यवाद आभार सुधा जी
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