गजल
रोज नये गम हैं , कुछ घटा लीजिये ,
दो घड़ी साथ हंस कर बिता लीजिये |
ईर्ष्या द्वेष से कुछ न होगा कभी ,
खुद को सबसे ऊंचा उठा लीजिये |
जिन्दगी ये महाकाव्य हो जायेगी , कोई दर्द ह्रदय में बसा लीजिये |
जब न पलकें लगें , न जगा जा सके ,
कोई मेरी गजल गुनगुना लीजिये |
कई जन्मों के पाप धुल जायेंगे ,
आंसुओं में किसी के नहा लीजिये |
मारीचों का युग है बचेंगे नहीं ,
खुद को कितना राघव बना लीजिये | -
छोड़ दें साथ जब मुश्किलों में सभी ,
आप आवाज हमको लगा लीजिये |
अनुभव जो फरेबों के लिक्खे कोई ,
' आलोक ' को जुरूर बुलवा लीजिये |
रचना ---- आलोक सिन्हा
वाह!सराहनीय गजल।
जवाब देंहटाएंहर बंद लाज़वाब 👌
जिन्दगी ये महाकाव्य हो जायेगी , कोई दर्द ह्रदय में बसा लीजिये... वाह!
नववर्ष की हार्दिक बधाई एवं अनेकानेक शुभकामनाएँ आदरणीय सर।
सादर नमस्कार
बहुत बहुत धन्यवाद आभार अनीता जी
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आपका सरिता जी
जवाब देंहटाएंजिन्दगी ये महाकाव्य हो जायेगी , कोई दर्द ह्रदय में बसा लीजिये |
जवाब देंहटाएंवाह!!!!
कमाल की गजल एक सेबढ़कर एक शेर
लाजवाब।।।
बहुत बहुत धन्यवाद आभार सुधा जी
हटाएंबहुत शानदार ग़ज़ल, हर शेर उम्दा कुछ कह रहा सा।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार
जवाब देंहटाएंमारीचों का युग है बचेंगे नहीं ,
जवाब देंहटाएंखुद को कितना राघव बना लीजिये |.. सार्थक संदर्भ उठाती सुंदर रचना । ।
बहुत बहुत धन्यवाद आभार जिज्ञासा जी
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार मनोज जी
जवाब देंहटाएंजिन्दगी ये महाकाव्य हो जायेगी , कोई दर्द ह्रदय में बसा लीजिये.... बहुत सुंदर🙏🙏
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार विश्व मोहन जी
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