गीत
तुम किसी
से यह बात मत कहना ,
कोई
तुम्हारी दाह में जल रहा है |
नयन में तुम्हारे सपने सजा कर ,
अश्रु में किसी के प्राण गल रहे हैं |
बूँद बूँद पर चिर प्यास की कहानी ,
लेकर किसी के साँस चल रहे हैं |
तुम किसी से यह बात मत कहना ,
कोई तुम्हारी चाह में गल रहा है |
प्राण में तुम्हारी सुधियाँ बसा कर ,
आज तक किसी के गीत रो रहे हैं |
गीत के गीले स्वरों पर किसी की ,
पीड़ा मचलती स्वप्न सो रहे हैं |
तुम किसी से यह बात मत कहना ,
कोई तुम्हारी थाह में छल रहा है |
तुम्हारे निठुर प्यार की साधना में ,
किसी के ह्रदय की करुणा मचलती |
पग तो थके बार बार पंथ में पर ,
किसी
की विकल चाहना नित्य चलती |
तुम किसी से यह बात मत कहना ,
कोई तुम्हारी राह में चल रहा है |
तुम्हारे निठुर प्यार की साधना में ,
जवाब देंहटाएंकिसी के ह्रदय की करुणा मचलती |
पग तो थके बार बार पंथ में पर ,
किसी की विकल चाहना नित्य चलती |///
मन की विरह वेदना की मधुर, सरस और मार्मिक अभिव्यक्ति//
हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई आदरणीय कविराज 🙏🙏💐💐
रेणु जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार सुन्दर टिप्पणी के लिए
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (२०-०१ -२०२२ ) को
'नवजात अर्चियाँ'(चर्चा अंक-४३१५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत बहुत धन्यवाद आभार अनीता जी
जवाब देंहटाएंअद्भुत। सुंदर एहसास से परिपूर्ण कविता।
जवाब देंहटाएंनितीश जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार टिप्पणी के लिए
जवाब देंहटाएंकोई तुम्हारी दाह में जल रहा है |
जवाब देंहटाएंनयन में तुम्हारे सपने सजा कर ,
अश्रु में किसी के प्राण गल रहे हैं |
बूँद बूँद पर चिर प्यास की कहानी ,
लेकर किसी के साँस चल रहे हैं | बेहद मार्मिक अभिव्यक्ति ।
जिज्ञासा जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब !
जवाब देंहटाएंशमा की परवाने से बेवफ़ाई की शिक़ायत अगर दुनिया वालों तक पहुँच भी गयी तो क्या फ़र्क पड़ेगा? परवाना तो दुनिया को खबर होने तक खाक़ हो ही चुका होगा.
बहुत धन्यवाद आभार गोपेश मोहन जी
हटाएंअति सुन्दर नेह-सृजन ।
जवाब देंहटाएंअमृता जी बहुत बहुत आभार धन्यवाद
हटाएंतुम किसी से यह बात मत कहना ,
जवाब देंहटाएंकोई तुम्हारी चाह में गल रहा है |
प्राण में तुम्हारी सुधियाँ बसा कर ,
आज तक किसी के गीत रो रहे हैं |
गीत के गीले स्वरों पर किसी की ,
पीड़ा मचलती स्वप्न सो रहे हैं |
अद्भुत!
बहुत ही मार्मिक व हृदयस्पर्शी!
मनीषा जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार
हटाएंवाह बहुत सुंदर मोहक पंक्तियां
जवाब देंहटाएंभारती जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार
हटाएंवेदना का अथाह संप्रेषण, हृदय स्पर्शी सृजन।
जवाब देंहटाएंविरह श्रृंगार की सुंदर प्रस्तुति।
कुसुम जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार सुन्दर टिप्पणी के लिए
जवाब देंहटाएंतुम्हारे निठुर प्यार की साधना में ,
जवाब देंहटाएंकिसी के ह्रदय की करुणा मचलती |
पग तो थके बार बार पंथ में पर ,
किसी की विकल चाहना नित्य चलती |
बहुत ही लाजवाब एवं सराहनीय...
बहुत ही मार्मिक एवं हृदयस्पर्शी सृजन
सुधा देवरानी जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार टिप्पणी के लिए
जवाब देंहटाएंवाह! समर्पण की साधना का संगीत।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार विश्व मोहन जी
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