मंगलवार, 17 अगस्त 2021

जब से भाभी मिलीं

                               गीत

                   जब से भाभी मिलीं दिन सुघर हो गये ,

                   सूने सूने सभी पल मधुर हो गये |

                        पायलें फागुनी गीत गानें लगीं ,

                        चूड़ियाँ हर घड़ी गुनगुनानें लगीं |

                  जब से पावन मृदुल पाँव उनके पड़े ,

                  सब घर देहरी आंगन मुखर हो गये |

                        कब सवेरा हुआ कब दुपहरी ढली ,

                        कुछ नहीं ज्ञात कब दीप-बाती जली |

                  जब से बातें शुरू मन की उनसे हुईं ,

                  सब दिवस जैसे छोटे पहर हो गये |

                            चाँदनी से अधिक गात कोमल विमल ,

                        नयन जैसे नेह के खिले हों कमल |

                  नख - शिख रूप कैसे व्यक्त उनका करूं ,

                  शब्द बौने औ’ अक्षम अधर हो गये | 

 

                    स्वरचित मौलिक -  आलोक सिन्हा

 

 

 

12 टिप्‍पणियां:

  1. एक संयुक्त परिवार में रिश्तों का क्या महत्व और उल्लास है, सुंदर भाव जगाती उत्कृष्ट रचना।जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई।

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  2. जिज्ञासा जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार सुन्दर टिप्पणी के लिए |

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  3. बहुत बहुत धन्यवाद आभार इस मीठी टिप्पणी के लिए ।

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  4. उत्तर
    1. सरिता जी बहुत बहुत आभार धन्यवाद टिप्पणी के लिए |

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  5. वास्तव में अप्रतिम..विषय भी..गीत भी..
    बहुत सुंदर..

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  6. बहुत बहुत धन्यवाद आभार सुन्दर टिप्पणी के लिए

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  7. बहुत बहुत धन्यवाद आभार अमृता जी

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  8. गीत की प्रशंसा हेतु उपयुक्त शब्द ही नहीं मिल पा रहे हैं आलोक जी। नमन करता हूँ उस लेखनी को जिससे यह सिरजा गया है।

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  9. जितेन्द्र जी आज आपकी टिप्पणी देख पाया |सच आपकी हर टिप्पणी बहुत सटीक और मन को छूने वाली होती है | बहुत बहुत धन्यवाद आभार |

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