वर्षा गीत
रिमझिम पड़ें
फुहार ,
हमारे
आंगन में |
मन की
कलियाँ खिल मुस्कायें ,
डाली
झूम झूम झुक जाएँ ,
आई लौट बहार ,
हमारे आंगन में |
नई उमंगें
पेंग बढाएं ,
सपनों के नभ को छू आयें ,
गाये पिकी मल्हार ,
हमारे आंगन में |
सांसें
विकल कजरिया गायें ,
सुधियाँ
पथ में पलक बिछाएं ,
मुतियन वन्दन वार ,
हमारे आंगन में |
वर्षागीत के लिए बहुत-बहुत बधाई आलोक जी। सादर।
जवाब देंहटाएंवीरेन्द्र जी बहुत बहुत धन्यवाद सुखद टिप्पणी के लिए
जवाब देंहटाएंवाह, लग रहा कि आँगन में रिमझिम बूंदें बरस रहीं और आप गीत लिख रहे । बहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंसंगीता जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार मधुर टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंयह सचमुच ही गीत है क्योंकि यह गेय है। यदि संभव हो तो इस सुंदर गीत को किसी मधुर धुन में ढलने दें आलोक जी तथा किसी के स्वर में संगीत-प्रेमियों को सुनवाएं। अभिनंदन आपका।
जवाब देंहटाएंजितेन्द्र जी बहुत बहुत आभार धन्यवाद मधुर टिप्पणी के लिए
हटाएंबहुत सुंदर! मन को लुभाता वर्णन पावस का।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार धन्यवाद सुन्दर टिप्पणी के लिए
हटाएंबहुत सुंदर । बिल्कुल गाने का मन कर जाय,ऐसा सुंदर गीत। बहुत शुभकामनाएं आपको ।
जवाब देंहटाएंजिज्ञासा जी सुन्दर टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गीत, आलोक भाई।
जवाब देंहटाएंज्योति जी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आभार
जवाब देंहटाएंमन की कलियाँ खिल मुस्कायें ,
जवाब देंहटाएंडाली झूम झूम झुक जाएँ ,
आई लौट बहार ,
हमारे आंगन में |
वाह!!!!
बहुत ही मनभावन गीत
सावन की फुहारों में गुनगुनाने लायक लाजवाब सृजन।
सुधा जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार टिप्पणी के लिए
जवाब देंहटाएंउम्दा भाव से सजी कविता|
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार आशा जी टिप्पणी के लिए
जवाब देंहटाएंअत्यन्त सुन्दरतम कृति ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार अमृता जी
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