गीत
तुमको मेरे भजन न भाये |
सांस सांस बन गई आरती ,
स्वर बन गूंजे भजन तुम्हारे |
धडकन धडकन बनी बांसुरी ,
टेरे तुमको सांझ सकारे |
तुमको यह वन्दन न सुहाए |
स्नेह गंध सरसी कलियों के ,
हार युगल चरणों पर वारे |
अक्षत , कुमकुम , अर्घ्य अश्रु जल ,
रो रोकर तव चरण पखारे |
तुमको यह अर्पण न सुहाए |
लगन तुम्हारी ध्यान तुम्हारा ,
मन में रूप अनूप समाया |
तिल तिल जले प्राण की बाती ,
चन्दन धूप बनी यह काया |
तुमको यह अर्चन न सुहाए |
ह्रदय पटल पर चित्र तुम्हारा ,
नयनों में उसकी प्रति छाया |
श्याम पुतलियों में छवि जगमग ,
मैं निरखूँ , सब जगत लुभाया |
तुमको यह दर्पण न सुहाए |
बहुत सुन्दर और मधुर गीत।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार भाई साहब
जवाब देंहटाएंवाह! समर्पण का अनहद सरगम!!!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंवाह ! अंतस की घनीभूत पीड़ा में पगी अनुरागी मन की व्यथा कथा , शब्द -शब्द
जवाब देंहटाएंजिसका प्रवाह निर्झर सा गतिमान है | किसी निर्मम के लिए ये मार्मिक उद्बोधन मन को करुना में डुबो देता है | इस भाव प्रवण सृजन के लिए आपको आभार और शुभकामनाएं आदरणीय आलोक जी | ब्लॉग जगत आपके भावों के अनमोल खजाने से रूबरू हो रहा है , ये देखकर अच्छा लगता है | सादर
रेणु जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार इस सार्थक सुन्दर टिप्पणी के लिए
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०३-०४-२०२१) को ' खून में है गिरोह हो जाना ' (चर्चा अंक-४०२५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
अनीता सैनी
अनीता जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार रचना को सम्मान देने के लिए ।
हटाएंलगन तुम्हारी ध्यान तुम्हारा ,
जवाब देंहटाएंमन में रूप अनूप समाया |
तिल तिल जले प्राण की बाती ,
चन्दन धूप बनी यह काया |
तुमको यह अर्चन न सुहाए |
समर्पण की भी इन्तिहाँ हो गयी .... खूबसूरत शब्दों में रची है मन की भावना ...
संगीता जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार सुन्दर टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत रचना,सच्चे हृदय से समर्पित किये गए है प्रभु को अपने मन के भाव सभी, सादर नमन बधाई हो आलोक जी
जवाब देंहटाएंज्योति जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार सार्थक टिप्पणी के लिए
हटाएंबहुत सुंदर, सचमुच बहुत ही सुंदर भक्ति-गीत । अतिशय प्रशंसा के योग्य ।
जवाब देंहटाएंजितेन्द्र ज़ी बहुत बहुत धन्यवाद आभार रचना पसंद आने के लिए
हटाएंअत्यंत सुन्दर भक्ति गीत ।
जवाब देंहटाएंमीना जी बहुत बहुत आभार धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंकभी-कभी लाचारी, बेबसी में ऐसा लगने लगता है कि वह हमारी नहीं सुन रहा
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार गगन जी
जवाब देंहटाएंवाह!समर्पित व्यथित भाव ।
जवाब देंहटाएंहृदय स्पर्शी भक्ति गीत।
कुसुम प्रज्ञा जी बहुत बहुत आभार धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति है आपकी आदरणीय आलोक सिन्हा जी, बिलकुल ऐसा महसूस हुआ अपना कुछ भी नही,है आत्मसंतुष्टि की पराकाष्ठा परिलक्षित हो रही है,सुंदर रचना । आपको हार्दिक नमन ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार धन्यवाद जिज्ञासा जी बहुत सुन्दर टिप्पणी के लिए ।
हटाएंबहुत ही मनहर अभिव्यक्ति है,मन तृप्त हो गया
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार रचना पसन्द आने के लिए ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे कवि हैं आलोक जी आप । भक्त की ओर से आराध्य को की गई शिकायत का ऐसा हृदय-विजयी वर्णन अन्यत्र कहीं नहीं पाया ।
जवाब देंहटाएंजितेन्द्र जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार मन को भीतर तक छू लेने वाली टिप्पणी के लिए ।
जवाब देंहटाएंलगन तुम्हारी ध्यान तुम्हारा ,
जवाब देंहटाएंमन में रूप अनूप समाया |
तिल तिल जले प्राण की बाती ,
चन्दन धूप बनी यह काया |
तुमको यह अर्चन न सुहाए
बहुत ही भावप्रवण हृदयस्पर्शी भक्ति गीत
आपके लेखन की बात ही निराली है
नमन आपको और आपकी लेखनी को।
बहुत बहुत आभार धन्यवाद सुधा जी इस अच्छी मन मोहक टिप्पणी के लिये ।
जवाब देंहटाएंअति मनभावन कृति ।
जवाब देंहटाएंअमृता जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार
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