बुधवार, 31 मार्च 2021

तुमको मेरे भजन न भाये ।

                  गीत

 

         तुमको मेरे भजन न भाये |

                सांस सांस बन गई आरती ,

                स्वर बन गूंजे भजन तुम्हारे |                                                                   

             धडकन धडकन बनी बांसुरी ,

             टेरे तुमको सांझ सकारे |

                  तुमको यह वन्दन न सुहाए |  

                स्नेह गंध सरसी कलियों के ,

             हार युगल चरणों पर वारे |

             अक्षत , कुमकुम , अर्घ्य अश्रु जल ,

             रो रोकर तव चरण पखारे |

                  तुमको यह अर्पण न सुहाए |

            लगन तुम्हारी ध्यान तुम्हारा ,

            मन में रूप अनूप समाया |

            तिल तिल जले प्राण की बाती ,

            चन्दन धूप बनी यह काया |

                   तुमको यह अर्चन न सुहाए |

            ह्रदय पटल पर चित्र तुम्हारा ,

            नयनों में उसकी प्रति छाया |

            श्याम पुतलियों में छवि जगमग ,

            मैं निरखूँ , सब जगत लुभाया |

                    तुमको यह दर्पण न सुहाए |


 

             

30 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बहुत धन्यवाद आभार भाई साहब

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  2. बहुत बहुत धन्यवाद आभार आदरणीय ।

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  3. वाह ! अंतस की घनीभूत पीड़ा में पगी अनुरागी मन की व्यथा कथा , शब्द -शब्द
    जिसका प्रवाह निर्झर सा गतिमान है | किसी निर्मम के लिए ये मार्मिक उद्बोधन मन को करुना में डुबो देता है | इस भाव प्रवण सृजन के लिए आपको आभार और शुभकामनाएं आदरणीय आलोक जी | ब्लॉग जगत आपके भावों के अनमोल खजाने से रूबरू हो रहा है , ये देखकर अच्छा लगता है | सादर

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  4. रेणु जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार इस सार्थक सुन्दर टिप्पणी के लिए

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  5. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०३-०४-२०२१) को ' खून में है गिरोह हो जाना ' (चर्चा अंक-४०२५) पर भी होगी।

    आप भी सादर आमंत्रित है।

    --
    अनीता सैनी

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    1. अनीता जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार रचना को सम्मान देने के लिए ।

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  6. लगन तुम्हारी ध्यान तुम्हारा ,

    मन में रूप अनूप समाया |

    तिल तिल जले प्राण की बाती ,

    चन्दन धूप बनी यह काया |

    तुमको यह अर्चन न सुहाए |

    समर्पण की भी इन्तिहाँ हो गयी .... खूबसूरत शब्दों में रची है मन की भावना ...

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  7. संगीता जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार सुन्दर टिप्पणी के लिए |

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  8. बहुत ही खूबसूरत रचना,सच्चे हृदय से समर्पित किये गए है प्रभु को अपने मन के भाव सभी, सादर नमन बधाई हो आलोक जी

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    1. ज्योति जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार सार्थक टिप्पणी के लिए

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  9. बहुत सुंदर, सचमुच बहुत ही सुंदर भक्ति-गीत । अतिशय प्रशंसा के योग्य ।

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    1. जितेन्द्र ज़ी बहुत बहुत धन्यवाद आभार रचना पसंद आने के लिए

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  10. मीना जी बहुत बहुत आभार धन्यवाद ।

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  11. कभी-कभी लाचारी, बेबसी में ऐसा लगने लगता है कि वह हमारी नहीं सुन रहा

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  12. वाह!समर्पित व्यथित भाव ।
    हृदय स्पर्शी भक्ति गीत।

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  13. कुसुम प्रज्ञा जी बहुत बहुत आभार धन्यवाद

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  14. बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति है आपकी आदरणीय आलोक सिन्हा जी, बिलकुल ऐसा महसूस हुआ अपना कुछ भी नही,है आत्मसंतुष्टि की पराकाष्ठा परिलक्षित हो रही है,सुंदर रचना । आपको हार्दिक नमन ।

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    1. बहुत बहुत आभार धन्यवाद जिज्ञासा जी बहुत सुन्दर टिप्पणी के लिए ।

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  15. बहुत ही मनहर अभिव्यक्ति है,मन तृप्त हो गया

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  16. बहुत बहुत धन्यवाद आभार रचना पसन्द आने के लिए ।

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  17. बहुत अच्छे कवि हैं आलोक जी आप । भक्त की ओर से आराध्य को की गई शिकायत का ऐसा हृदय-विजयी वर्णन अन्यत्र कहीं नहीं पाया ।

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  18. जितेन्द्र जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार मन को भीतर तक छू लेने वाली टिप्पणी के लिए ।

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  19. लगन तुम्हारी ध्यान तुम्हारा ,
    मन में रूप अनूप समाया |
    तिल तिल जले प्राण की बाती ,
    चन्दन धूप बनी यह काया |
    तुमको यह अर्चन न सुहाए
    बहुत ही भावप्रवण हृदयस्पर्शी भक्ति गीत
    आपके लेखन की बात ही निराली है
    नमन आपको और आपकी लेखनी को।

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  20. बहुत बहुत आभार धन्यवाद सुधा जी इस अच्छी मन मोहक टिप्पणी के लिये ।

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  21. अमृता जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार

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