गीत
सूक्ष्म
मलिन से खद्योतों को दिनकर कहने वालो ,
गहन अमावस में पूनम की छटा निरखने वालो ,
तुम कितना
जग को भरमाओ ,
कागों की संस्कृति अपनाओ ,
लेकिन सच्चाई का भू पर मरण नहीं होगा |
नैतिक मूल्यों का तिलभर भी पतन नहीं होगा |
दो दिन तो घन घोर घटायें ,
प्रलय मचा सकतीं हैं |
तीव्र तड़ित गर्जन से अपनी ,
शक्ति दिखा सकती हैं |
किन्तु अल्प वर्षा का मौसम सतत समझने वालो ,
हर स्वच्छंद मुखर वाणी पर पहरे जड़ने वालो ,
तुम कितने प्रतिबन्ध लगाओ ,
शकुनी वाले जाल बिछाओ ,
लेकिन षड्यंत्रों से पूरा सपन नहीं
होगा |
कितना
भी विशाल रत्नाकर ,
पर पूज्य न हो पाया |
बस खारे स्वभाव के कारण ,
सब जग ने ठुकराया |
पर धन वैभव की लिप्सा वश , वन्दन करने
वालो ,
दम्भी लहरों के कृत्यों से , सहमत दिखने वालो , - तुम कितने
निर्मम हो जाओ ,
अक्षम , अज्ञानी बन जाओ ,
लेकिन
अहं जन्य क्रिया को नमन नहीं होगा |
सच्चाई
धरती पर जनमी ,
पावन अमृत पीकर |
चन्दन तो चन्दन रहता है ,
लिपटें अगणित विषधर |
लेकिन मिथ्या की बैसाखी लेकर चलने वालो ,
नैतिकता का चीर हरण कर , मन मन हंसने वालो ,
तुम कितनी ही धूल उड़ाओ ,
नित सब पर कालिख बरसाओ ,
लेकिन आदर्शों का मैला बदन नहीं
होगा |
स्व
रचित --- आलोक सिन्हा |
अहा , कितना सकारात्मक भाव , आशा का संचार करती हुई और अपनी संस्कृति के उच्च मूल्यों को कहती मन को आल्हादित कर गयी आपकी ये कविता ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ।
संगीता जी मन को उत्साहित करने वाली सुन्दर टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आभार
हटाएंआपकी यह रचना कल सोमवार को पाँच लिंकों के आनंद पर होगी ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद रचना को सम्मान देने के लिए
हटाएंक्या बात है आदरणीय आलोक जी !नैतिकता की ह्त्या का प्रयास करने वालों को खरी -खरी सुनाती रचना मन को छू गयी | छोटी -छोटी बातो को बड़ा बनाकर प्रचारित करने वाले , अराजक तत्व समझ नहीं पाते , दुर्भावना का अस्तित्व बहुत छोटा है जबकि सद्भावनाओं का आकाश बहुत बड़ा | संसार में बुरी शक्तियाँ अंततः हारी ही हैं | हार्दिक बधाई इतने सुंदर भावों से सजी रचना के लिए | सादर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार रचना का मर्म परख कर सार्थक टिप्पणी करने के लिए
हटाएंआपकी लिखी कोई रचना बुधवार , 17 मई 2021 को साझा की गई है ,
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।संगीता स्वरूप
बहुत बहुत धन्यवाद आभार रचना को सम्मान देने के लिए
हटाएंलेकिन सच्चाई का भू पर मरण नहीं होगा |
जवाब देंहटाएंनैतिक मूल्यों का तिलभर भी पतन नहीं होगा |
वाह!!!
इस निराशाजनक माहोल में आशा और विश्वास जगाती सकारात्मकता से ओतप्रोत बहुत ही लाजवाब सृजन।
सुधा जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार सार्थक टिप्पणी कर लिए
हटाएंआपकी इस उत्कृष्ट रचना और आपके आशावाद, दोनों को ही मेरा नमन आदरणीय आलोक जी।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार जितेन्द्र जी
जवाब देंहटाएंअक्षम , अज्ञानी बन जाओ ,
जवाब देंहटाएंलेकिन अहं जन्य क्रिया को नमन नहीं होगा |
सच्चाई धरती पर जनमी ,
पावन अमृत पीकर |
चन्दन तो चन्दन रहता है ,
लिपटें अगणित विषधर |
लेकिन मिथ्या की बैसाखी लेकर चलने वालो ,
नैतिकता का चीर हरण कर , मन मन हंसने वालो ,.. सकारात्मकता की ऊर्जा का संचार करती तथा मन को आह्लादित करती उत्कृष्ट रचना ।
बहुत बहुत धन्यवाद आभार इस बहुत सार्थक और मन में नई ऊर्जा संचरित करने वाली टिप्पणी के लिए |
हटाएंनतमस्तक करती सूक्ष्म विश्लेषण लिए सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंसादर नमन।
बहुत बहुत धन्यवाद आभार सधु जी |
हटाएंवाह!खूबसूरत भावों से सजी ,सुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंशुभा जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार |
हटाएंआशा निराशा की विश्लेषण करती हुई खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंविभारती जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार
हटाएंआशा का संचार करती बहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंज्योति जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार
जवाब देंहटाएंअति सराहनीय सृजन ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार अमृता जी
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