मंगलवार, 25 मई 2021

कब से मौन पड़ी है वंशी

 

                 गीत

   कब से मौन पड़ी है वंशी श्याम तुम्हारी |

           तन गोकुल का गाँव ,

           नयन कालिन्दी कूल किनारे |

           गुमसुम बैठीं हैं राधा सी ,

           सुधियाँ सब मन मारे |

   तुम आओ तो रास रचाये , हर धड़कन मतवारी |

           मुझको कब था ज्ञान ,

           कि इसके स्वर हैं पास तुम्हारे |

           जैसे काया तो मेरी ,

           पर सारे श्वांस तुम्हारे |

  तुम्हीं बजाओ तभी बजेगी , यह कैसी लाचारी |  

 


 

 

 

 

 

23 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर और बांसुरी सी गति हुई रचना,आज के परिदृष्य पर भी चोट कर गई,आपको मेरा सादर अभिवादन ।

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  2. बहुत बहुत धन्यवाद आभार जिज्ञासा जी ।

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  3. शिवम जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार

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  4. मुझको कब था ज्ञान ,

    कि इसके स्वर हैं पास तुम्हारे |

    जैसे काया तो मेरी ,

    पर सारे श्वांस तुम्हारे |

    सुंदर सृजन

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  5. मुझको कब था ज्ञान ,

    कि इसके स्वर हैं पास तुम्हारे |

    जैसे काया तो मेरी ,

    पर सारे श्वांस तुम्हारे |
    वाह,बहुत सुंदर।

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  6. ज्योति जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार

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  7. स्वर कान्हा के हों तो ... वायु प्राण कान्हा के हों तो अमर नाद गूंजेगा ...
    सुन्दर भावपूर्ण रचना ...

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  8. नासवा जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार

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  9. मुझको कब था ज्ञान ,

    कि इसके स्वर हैं पास तुम्हारे |
    जैसे काया तो मेरी ,

    पर सारे श्वांस तुम्हारे
    तुम्हीं बजाओ तभी बजेगी , यह कैसी लाचारी।
    कान्हा ने बंशी बजानी छोड़ी तो जीवन के सुर ही मौन हो रहे हैंअब मना से सभी कान्हा को...
    बहुत ही लाजवाब सृजन
    वाह!!!

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  10. सुधा जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार

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  11. श्याम की वंशी की तान महज़ ध्वनि नहीं एक अलौकिक अनहद नाद है। बहुत मीठी कविता। आभार और बधाई!!!

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  12. बहुत बहुत धन्यवाद आभार भाई साहब

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  13. हृदय स्पर्शी! बहुत सुंदर रचना।

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  14. हृदय में उतरकर उसकी तलहटी पर पैठ जाएं, ऐसे उद्गार एवं इतने सुन्दर छंदबद्ध शब्दों में! चाहे जितनी बार भी पढ़ा (या गाया) जाए, मन न भरे, ऐसा गीत है यह्।

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  15. जितेन्द्र जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार

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  16. कान्हा की बंसी तो बस राधा और गोपियों यानि गोकुल तक ही सीमित रही । सुंदरता से लिखे हृदय के उद्गार ।

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  17. संगीता जी बहुत बहुत आभार धन्यवाद

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  18. कब से मौन पड़ी है वंशी श्याम तुम्हारी |
    एक बेबस मन की विकल पुकार आदरणीय आलोक जी | श्याम की बंशी आम जन का मधुर सपना बनकर कहीं खो -सी गयी है |

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  19. रेणु जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार टिप्पणी के लिए।

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  20. बहुत बहुत धन्यवाद आभार अमृता जी

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