बुधवार, 24 मार्च 2021

अपने रंगों में रंगा रंगीला मन ,

 

                  गीत

 

       अपने रंगों में रंगा रंगीला मन ,

       अब कोई भी रंग नहीं चढ़ता है |

             लाल गुलाल मोह ममता –

            का तुम मुझ पर मत डारो |

             कच्चे रंगों वाली अपनी ,

             यह पिचकारी मत मारो |

                   मेरे पुण्यों के सच्चे हैं सब रंग ,

                   अब कोई भी रंग नहीं चढ़ता है |

            जो कुछ दिया वही पाया ,

            इस जीवन की झोली में |

            कितनी बार जलाये मैंने ,                                                                                       

            कालुष मरण की होली में |

                   तप तप कर हो गई जिन्दगी कुन्दन ,

                   अब कोई भी मैल नहीं चढ़ता है |

यह रंगना बाहर बाहर ,

            यह झूठा आडम्बर |

            मैं अन्तर से रंगी , रंग -

            रस डूबी भीतर बाहर |

                    भीगूँ , जलूं सुगन्धित होगा चंदन ,

                   अब कोई भी जहर नहीं चढ़ता है |

 

                 रचना --- कुसुम सिन्हा

 

 

 

 

36 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीया कुसुम सिन्हा जी की इस सुंदर रचना से परिचित कराने के लिए आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय आलोक सिन्हा सर।

    जवाब देंहटाएं
  2. भीगूँ , जलूं सुगन्धित होगा चंदन ,
    अब कोई भी जहर नहीं चढ़ता है |
    बहुत ही भावपूर्ण रचना आदरणीय आलोक जी | कुसुम दीदी का भावपूर्ण लेखन और उसे साहित्य प्रेमियों से परिचित कराने का आपका पुण्य प्रयास वन्दनीय है | कुसुम दीदी को सादर नमन |

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. रेणु जी बहुत अच्छी सार्थक टिप्पणी के लिए बहुत धन्यवाद आभार

      हटाएं
  3. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 26-03-2021) को
    "वासन्ती परिधान पहनकर, खिलता फागुन आया" (चर्चा अंक- 4017)
    पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद.


    "मीना भारद्वाज"

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मीना जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार रचना को सम्मान देने के लिए । मैं अवश्य पहुंचूंगा चर्चा में ।

      हटाएं
  4. बहुत बहुत धन्यवाद आभार शिवम जी

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह ,
    बहुत सुन्दर बात ... न मैल चढ़े, न ज़हर ... बस चन्दन ही चन्दन ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. संगीता जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार अच्छी टिप्पणी के लिए

      हटाएं
  6. मैं अन्तर से रंगी , रंग -रस डूबी भीतर बाहर
    - सार्थक एवं संतृप्त!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रतिभा जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार सुखद टिप्पणी के लिए

      हटाएं
  7. होली के रंगों से सरोबार कविता, मुग्धता बिखेरती है सुन्दर सृजन।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. शांतनु जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार मोहक टिप्पणी के लिए

      हटाएं
  8. बहुत बहुत धन्यवाद आभार प्रीति जी |

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत बहुत धन्यवाद आभार ज्योति जी

    जवाब देंहटाएं
  10. अति सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक आभार एवं शुभकामनाएँ ।

    जवाब देंहटाएं
  11. कुसुम सिन्हा जी को इस सुंदर और बढ़िया रचना के लिए शुभकामनाएँ। होली के अवसर पर सुंदर सृजन।

    जवाब देंहटाएं
  12. तप तप कर हो गई जिन्दगी कुन्दन ,
    अब कोई भी मैल नहीं चढ़ता है |
    यह रंगना बाहर बाहर ,
    यह झूठा आडम्बर |

    बहत सुंदर
    हृदयग्राही रचना

    साधुवाद 🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. वर्षा जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार अच्छी सुन्दर टिप्पणी के लिए

      हटाएं
  13. बहुत बहुत धन्यवाद आभार भाई साहब

    जवाब देंहटाएं
  14. होली के सरल, शुद्ध भाव से परिपूर्ण रचना ...
    बहुत ही सुन्दर गीत जैसे ...

    जवाब देंहटाएं
  15. बहुत बहुत धन्यवाद आभार नासवा जी

    जवाब देंहटाएं
  16. अपने रंगों में रंगा रंगीला मन ,

    अब कोई भी रंग नहीं चढ़ता है |

    लाल गुलाल मोह ममता –

    का तुम मुझ पर मत डारो |

    कच्चे रंगों वाली अपनी ,

    यह पिचकारी मत मारो |
    बहुत ही सुंदर गीत
    होली के महापर्व पर आपको हार्दिक शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  17. बहुत बहुत धन्यवाद आभार सुंदर टिप्पणी के लिए । होली की आपको भी हार्दिक शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  18. आत्मसंतुष्टि का सुंदर भाव आपके होली गीत में स्पष्ट नजर आ रहा है,आपको नमन करते हुए होली की हार्दिक शुभकामनाएं एवम बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
  19. सुखद टिप्पणी के लिए जिज्ञासा जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार | होली की शुभ कामनाएं आपको भी |

    जवाब देंहटाएं
  20. बेहतरीन रचना मन की , बधाई हो आपको नमन

    जवाब देंहटाएं
  21. ज्योति जी बहुत बहुत आभार धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  22. कुसुम जी की इस रचना में सीधे हृदय की तलहटी से उठे उद्गार हैं । शब्द-शब्द से सच्चाई फूटी है ।

    जवाब देंहटाएं
  23. बहुत बहुत धन्यवाद आभार जितेन्द्र जी टिप्पणी के लिए |

    जवाब देंहटाएं