गीत
अपने रंगों में रंगा रंगीला मन ,
अब कोई भी रंग नहीं चढ़ता है |
लाल गुलाल मोह ममता –
का तुम मुझ पर मत डारो |
कच्चे रंगों वाली अपनी ,
यह पिचकारी मत मारो |
मेरे पुण्यों के सच्चे हैं सब रंग ,
अब कोई भी रंग नहीं चढ़ता है |
जो कुछ दिया वही पाया ,
इस जीवन की झोली में |
कितनी
बार जलाये मैंने ,
कालुष मरण की होली में |
तप तप कर हो गई जिन्दगी कुन्दन ,
अब कोई भी मैल नहीं चढ़ता है |
यह
रंगना बाहर बाहर ,
यह झूठा आडम्बर |
मैं अन्तर से रंगी , रंग -
रस डूबी भीतर बाहर |
भीगूँ , जलूं सुगन्धित होगा चंदन ,
अब कोई भी जहर नहीं चढ़ता है |
रचना --- कुसुम सिन्हा
आदरणीया कुसुम सिन्हा जी की इस सुंदर रचना से परिचित कराने के लिए आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय आलोक सिन्हा सर।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद मीना जी |
जवाब देंहटाएंभीगूँ , जलूं सुगन्धित होगा चंदन ,
जवाब देंहटाएंअब कोई भी जहर नहीं चढ़ता है |
बहुत ही भावपूर्ण रचना आदरणीय आलोक जी | कुसुम दीदी का भावपूर्ण लेखन और उसे साहित्य प्रेमियों से परिचित कराने का आपका पुण्य प्रयास वन्दनीय है | कुसुम दीदी को सादर नमन |
रेणु जी बहुत अच्छी सार्थक टिप्पणी के लिए बहुत धन्यवाद आभार
हटाएंसादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 26-03-2021) को
"वासन्ती परिधान पहनकर, खिलता फागुन आया" (चर्चा अंक- 4017) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
मीना जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार रचना को सम्मान देने के लिए । मैं अवश्य पहुंचूंगा चर्चा में ।
हटाएंवाह, बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार शिवम जी
जवाब देंहटाएंवाह ,
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बात ... न मैल चढ़े, न ज़हर ... बस चन्दन ही चन्दन ...
संगीता जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार अच्छी टिप्पणी के लिए
हटाएंमैं अन्तर से रंगी , रंग -रस डूबी भीतर बाहर
जवाब देंहटाएं- सार्थक एवं संतृप्त!
प्रतिभा जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार सुखद टिप्पणी के लिए
हटाएंहोली के रंगों से सरोबार कविता, मुग्धता बिखेरती है सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंशांतनु जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार मोहक टिप्पणी के लिए
हटाएंखूबसूरत वर्णन किया है
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार प्रीति जी |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार ज्योति जी
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक आभार एवं शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार अमृता जी
हटाएंकुसुम सिन्हा जी को इस सुंदर और बढ़िया रचना के लिए शुभकामनाएँ। होली के अवसर पर सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार वीरेन्द्र जी
हटाएंतप तप कर हो गई जिन्दगी कुन्दन ,
जवाब देंहटाएंअब कोई भी मैल नहीं चढ़ता है |
यह रंगना बाहर बाहर ,
यह झूठा आडम्बर |
बहत सुंदर
हृदयग्राही रचना
साधुवाद 🙏
वर्षा जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार अच्छी सुन्दर टिप्पणी के लिए
हटाएंबहुत सुन्दर गीत।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार भाई साहब
जवाब देंहटाएंहोली के सरल, शुद्ध भाव से परिपूर्ण रचना ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर गीत जैसे ...
बहुत बहुत धन्यवाद आभार नासवा जी
जवाब देंहटाएंअपने रंगों में रंगा रंगीला मन ,
जवाब देंहटाएंअब कोई भी रंग नहीं चढ़ता है |
लाल गुलाल मोह ममता –
का तुम मुझ पर मत डारो |
कच्चे रंगों वाली अपनी ,
यह पिचकारी मत मारो |
बहुत ही सुंदर गीत
होली के महापर्व पर आपको हार्दिक शुभकामनाएं
बहुत बहुत धन्यवाद आभार सुंदर टिप्पणी के लिए । होली की आपको भी हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंआत्मसंतुष्टि का सुंदर भाव आपके होली गीत में स्पष्ट नजर आ रहा है,आपको नमन करते हुए होली की हार्दिक शुभकामनाएं एवम बधाई ।
जवाब देंहटाएंसुखद टिप्पणी के लिए जिज्ञासा जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार | होली की शुभ कामनाएं आपको भी |
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना मन की , बधाई हो आपको नमन
जवाब देंहटाएंज्योति जी बहुत बहुत आभार धन्यवाद
जवाब देंहटाएंकुसुम जी की इस रचना में सीधे हृदय की तलहटी से उठे उद्गार हैं । शब्द-शब्द से सच्चाई फूटी है ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार जितेन्द्र जी टिप्पणी के लिए |
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